दिल कहता है रुठों को मनाना होगा
गर वो न झुकें ख़ुद झुक जाना होगा
दिल के मेहमाँ हैं वो तमाम नखरों के
उन्हें तो सर आँखों में बिठाना होगा
तमाम गिले शिकवे भुलाकर दोस्तों
जानी दुश्मन भी गले लगाना होगा
जमाना यही कहेगा मुझे बुज़दिल हूँ मैं
कल दिवाना मेरा वही जमाना होगा
ये धन दौलत कब तलक साथ होगी
किसी जुबां के लिये नाम कमाना होगा
मैं कब तक उठाकर चलूँ गुरुर अपना
इक दिन तो सब ख़ाक में जाना होगा
कोई बैठा है मेरे अन्दर स्वासों के लिये
बाद मोहलत तो वो भी रवाना होगा
ए ज़िंदगी क्या बार बार मिल पायेगी तू
हम गये तो फिर जाने कब आना होगा
©अज्ञात
#मोहलत