कसक! रहमत की डोर बांधे- काँधे से गिरता हू, जुल् | हिंदी Shayari

"कसक! रहमत की डोर बांधे- काँधे से गिरता हू, जुल्म सहती है रूहें ,आसमा चिरता हू। वे वादे- प्यार रहो मे रह गई -2 दिल मे कसक लिए फिरता हूँ। -विवेक की कलम से- ©VIVEK SINGH CHANDRAVANSHI"

 कसक! 

रहमत की डोर बांधे- काँधे से गिरता हू, 
जुल्म सहती है रूहें ,आसमा चिरता हू। 
वे वादे- प्यार रहो मे रह गई -2
दिल मे कसक लिए फिरता हूँ।

-विवेक की कलम से-

©VIVEK SINGH CHANDRAVANSHI

कसक! रहमत की डोर बांधे- काँधे से गिरता हू, जुल्म सहती है रूहें ,आसमा चिरता हू। वे वादे- प्यार रहो मे रह गई -2 दिल मे कसक लिए फिरता हूँ। -विवेक की कलम से- ©VIVEK SINGH CHANDRAVANSHI

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