White जब से ज़िंदगी ने बेरुखी दिखाई है,
हर किसी ने बस हमे आजमाई है
ख़्वाब थे जो आँखों में बसे बरसों से,
अब वो हकीकत से हो जुदा परछाई है।
सफ़र में थे कभी उम्मीदों के मेले,
अब तो हर कदम पर तन्हाई ही तन्हाई है।
सोचा था कि वक्त मरहम लगाएगा,
पर हर ज़ख्म ने गहरी गहराई है।
मुस्कानों में दर्द छुपाने की आदत,
ये हंसी भी जैसे एक परछाई है।
मंज़िलें बुलाती हैं दूर से मगर,
रास्तों ने दूरी बढ़ाई है।
हर एक मोड़ पे वफ़ा ढूंढी हमने,
पर हर दफ़ा बेवफ़ाई पाई है।
ज़िंदगी, तेरा करिश्मा समझ न पाए,
तूने हर मोड़ पे नई सज़ा सुनाई है।
©संतोष दत्ता
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