..हे वृक्ष तुम झुक जाया करो जब वह आया करे
बहुत मजबूत था एक जमाने में,
दिन रात लगा रहता था खेत खलिहानों में।
जवानी में कर्ज लेकर अब बुढापा आने लगा है ,
हे वृक्षों वह डर कर तुम्हारे पास आने लगा है।
वह घर का बडा है हर समस्या से लड़ा है,
बेटी के लिए वर देख लिया पर विवाह करना पडा है ।
दबाव अब उसे कर्ज का सताने लगा है ,
हे वृक्षों वह डर कर तुम्हारे पास आने लगा है।
जिसे बताया उसने कर उपहास और लात मार दी ,
कर्ज सिर्फ लेना जानते देना नही ऐसी बात मार दी ।
कैसे चुकाएं कर्ज इसका डर मौत बनकर मंडराने लगा है ,
हे वृक्षों वह डर कर तुम्हारे पास आने लगा है।
रास्ते सब बंद होकर अंधियारा छाने लगा है ,
वह अब पागल सा नज़र आने लगा है ।
इतने बढ गये दर्द की वह वेफ़िजूल खिलखिलाने लगा है ,
हे वृक्षों वह डर कर तुम्हारे पास आने लगा है।
©रोहित यदुवंशी 'प्रबल'
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