गुफ़्तुगू तूने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना
मैं तो इस ख़ाना-बदोशी में भी ख़ुश हूँ लेकिन
अगली नस्लें तो न भटकें उन्हें घर भी देना
ज़ुल्म और सब्र का ये खेल मुकम्मल हो जाए
उस को ख़ंजर जो दिया है मुझे सर भी देना
©Raghvendra Singh
#Shayar