#5LinePoetry मेरे इश्क़ में घुल जाओ दुनिया के ग़म भू | हिंदी Poetry

"#5LinePoetry मेरे इश्क़ में घुल जाओ दुनिया के ग़म भूल जाओ जिस तरह भंवरा रहता है फूल के साथ हाँ वैसे ही मेरी बाहों में झूल जाओ छोड़ आया हूँ मैं खुदको शायद वहां हाँ मेरे भी था एक सपनो का जहाँ वक्त की फ़िज़ाओ से एक चराग बुझ गया आज देखा मिला सिर्फ बर्बादी का धुंआ बहार रुख़सत हुई कब की दिल के सूखे गुलिस्तां में छाई है खिज़ा बता तेरी अब हसरत क्या है खुदा क्या अब चाहता है तू कज़ा क्या यही है तेरी रज़ा फ़कीर बना के घुमा रहा है जा ब जा ये ज़िन्दगी हो गई है बे मज़ा ये हयात है अब बेवजह ये ज़ख्म है अब ला दवा कोई है दीवाना यहाँ तो कोई है पारसा आँखों से क्यों हटता नहीं दुखो मा पर्दा देखा जो वक्त की पिछली किताबों में तो सिर्फ मिली खुदके साथ हुई वारदात रो पड़ी जिन्हें देख कर कलम और दवात गोशे में छुपकर रही अदावत झूठ ने बे तरह से उड़ाई फ़िर उसकी दावत ©qais majaz,soofi"

 #5LinePoetry मेरे इश्क़ में घुल जाओ
दुनिया के ग़म भूल जाओ
जिस तरह भंवरा रहता है
फूल के साथ
हाँ वैसे ही मेरी बाहों में झूल जाओ

छोड़ आया हूँ मैं खुदको शायद वहां
हाँ मेरे भी था एक सपनो का जहाँ
वक्त की फ़िज़ाओ से एक चराग बुझ गया
आज देखा मिला सिर्फ बर्बादी का धुंआ
बहार रुख़सत हुई कब की
दिल के सूखे गुलिस्तां में छाई है खिज़ा
बता तेरी अब हसरत क्या है खुदा
क्या अब चाहता है तू कज़ा
क्या यही है तेरी रज़ा
फ़कीर बना के घुमा रहा है जा ब जा
ये ज़िन्दगी हो गई है बे मज़ा
ये हयात है अब बेवजह
ये ज़ख्म है अब ला दवा
कोई है दीवाना यहाँ
तो कोई है पारसा
आँखों से क्यों हटता नहीं दुखो मा पर्दा
देखा जो वक्त की पिछली किताबों में
तो सिर्फ मिली खुदके साथ हुई वारदात
रो पड़ी जिन्हें देख कर कलम और दवात
गोशे में छुपकर रही अदावत
झूठ ने बे तरह से उड़ाई फ़िर उसकी दावत

©qais majaz,soofi

#5LinePoetry मेरे इश्क़ में घुल जाओ दुनिया के ग़म भूल जाओ जिस तरह भंवरा रहता है फूल के साथ हाँ वैसे ही मेरी बाहों में झूल जाओ छोड़ आया हूँ मैं खुदको शायद वहां हाँ मेरे भी था एक सपनो का जहाँ वक्त की फ़िज़ाओ से एक चराग बुझ गया आज देखा मिला सिर्फ बर्बादी का धुंआ बहार रुख़सत हुई कब की दिल के सूखे गुलिस्तां में छाई है खिज़ा बता तेरी अब हसरत क्या है खुदा क्या अब चाहता है तू कज़ा क्या यही है तेरी रज़ा फ़कीर बना के घुमा रहा है जा ब जा ये ज़िन्दगी हो गई है बे मज़ा ये हयात है अब बेवजह ये ज़ख्म है अब ला दवा कोई है दीवाना यहाँ तो कोई है पारसा आँखों से क्यों हटता नहीं दुखो मा पर्दा देखा जो वक्त की पिछली किताबों में तो सिर्फ मिली खुदके साथ हुई वारदात रो पड़ी जिन्हें देख कर कलम और दवात गोशे में छुपकर रही अदावत झूठ ने बे तरह से उड़ाई फ़िर उसकी दावत ©qais majaz,soofi

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