उठो बढ़ो आगाज करो, वरना विनाश हो जाएगा
है इंताजर क्या उस दिन का, जब जीवन नर्क हो जाएगा
जो रात में नंगा नाच करे,और दिन में धर्म का पाठ करे
जो सने हुए हों कीचड़ में,पर औरों से सवाल करे
रंगीन शाम, रंगीन रात, पर सुबह वे आचरण वाले हैं
दुख तो बहुत है, पर क्या बाकी यही जियाले हैं
यौवन आते ही कहर भी, जाने किधर से आने वाले हैं
बोटी बोटी नोच खाने को, खड़े ये जंगली मतवाले हैं।
पग एक बढ़ा मग में आगे, और आग लगा दिगमंडल में
दिखा प्रभंजन तू खुद का, और हाहाकार मचा जग में
तू खुद पौरुष है, किसी पौरुष का परिणाम नहीं
तू नारी है, क्या तुझपर तेरा अधिकार नहीं?
चिर अलग कर अंगो को,और फेंक विभिन्न दिशाओं में
चीख सुनाई पड़े कराहती इनकी दशो दिशाओं में।
आगाज करो