बस फ़र्ज हैं मेरी जिंदगी में इश्क कहाँ, सितम से ताज्जुब हैं मुहब्बत कहाँ, मैंने देखे है मोहब्बत दिखा कर इस्तमाल करते लोगों को, मैं तो शिरीन बन गयी, वो फरहाद कहाँ! की खाई थी कसम दोनों ने ही निभाने की मगर, हर जख्म पर मरहम परस्पर लगाने की मगर, आज दे आयी हूँ नबज भी उन्हें तोहफे में, मेरी खैरियत वो पूछें इतना भी तकलुफ़ कहाँ!!
©Sarika Vahalia
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