सांझ ढले कोई घर जाता है,कोई उम्मीदों के साथ अपना ग | हिंदी विचार

"सांझ ढले कोई घर जाता है,कोई उम्मीदों के साथ अपना गुज़ारा कर रहा होता है,ये दुनियां है जनाब रंग,रूप,ढंग,चाल सबकी अलग अलग होती हैं। ©Satish Kumar Meena"

 सांझ ढले कोई घर जाता है,कोई उम्मीदों के साथ अपना गुज़ारा कर रहा होता है,ये दुनियां है जनाब रंग,रूप,ढंग,चाल सबकी अलग अलग होती हैं।

©Satish Kumar Meena

सांझ ढले कोई घर जाता है,कोई उम्मीदों के साथ अपना गुज़ारा कर रहा होता है,ये दुनियां है जनाब रंग,रूप,ढंग,चाल सबकी अलग अलग होती हैं। ©Satish Kumar Meena

सांझ ढले

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