जितन अपने थे सब पराये थे हम हवा को गले लगये जितन | हिंदी शायरी

"जितन अपने थे सब पराये थे हम हवा को गले लगये जितनी कसमे थी सब थी शर्मिंदा जितने वादे थे सर झुकाए थे जितने आँसू थे सब थे बेगाने जितने महेमा थे बिन बलाये थे सब किताबे पढ़ी पढ़ाई थी सारे किस्से सुने सुनाये थे एक बंजर ज़मीं के सीने में मैंने कुछ अस्मा उगाये थे"

 जितन अपने थे सब पराये थे
हम हवा को गले लगये 

जितनी कसमे थी सब थी शर्मिंदा 

जितने वादे थे सर झुकाए थे 

जितने आँसू थे सब थे बेगाने 

जितने महेमा थे बिन बलाये थे 

सब किताबे पढ़ी पढ़ाई थी 

सारे किस्से सुने सुनाये थे 

एक बंजर ज़मीं के सीने में 

मैंने कुछ अस्मा उगाये थे

जितन अपने थे सब पराये थे हम हवा को गले लगये जितनी कसमे थी सब थी शर्मिंदा जितने वादे थे सर झुकाए थे जितने आँसू थे सब थे बेगाने जितने महेमा थे बिन बलाये थे सब किताबे पढ़ी पढ़ाई थी सारे किस्से सुने सुनाये थे एक बंजर ज़मीं के सीने में मैंने कुछ अस्मा उगाये थे

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