तेज धारा से बहती नदी हूं अपना रास्ता बनाना आता है | हिंदी कविता

"तेज धारा से बहती नदी हूं अपना रास्ता बनाना आता है मुझे, हां! सूख जाती हूं तेज धूप की तपिश में, ज़िद्दी हूं बादल बनकर बरसना आता है मुझे। ©||स्वयं लेखन||"

 तेज धारा से बहती नदी हूं अपना रास्ता
बनाना आता है मुझे,

हां! सूख जाती हूं तेज धूप की तपिश में,

ज़िद्दी हूं बादल बनकर बरसना आता है मुझे।

©||स्वयं लेखन||

तेज धारा से बहती नदी हूं अपना रास्ता बनाना आता है मुझे, हां! सूख जाती हूं तेज धूप की तपिश में, ज़िद्दी हूं बादल बनकर बरसना आता है मुझे। ©||स्वयं लेखन||

तेज धारा से बहती नदी हूं अपना रास्ता
बनाना आता है मुझे,

हां! सूख जाती हूं तेज धूप की तपिश में,

ज़िद्दी हूं बादल बनकर बरसना आता है मुझे।
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