Unsplash फासलों से गुरेज क्या करना,फासले कुर्बते ब | हिंदी Shayari

"Unsplash फासलों से गुरेज क्या करना,फासले कुर्बते बढ़ाते है, बात तो सही है,अक्सर ये हिजरते भी कराते है//१ मेरी कुर्बानिओं को भुलाकर अब मुझपे ऊँगली उठाते है, लोगो ये नफरतों के आलम कैसे कैसे मन्सुबे बनाते है//२ बारहा लज्जतें तो उल्फत मे ही बरकरार रही है,हरसु वो खुदको बड़गर बताकर्,दूसरों को कमतर बताते है//३ या रब शादाब रख उनको जो जमीर से ज़िंदा है, ये बेजमीर वाले तो इंसानियत को हद पार रुलाते है//४ देखा है"शमा"ने नफरतों मे फासला ए हिजरतों को, रब्बा वो लोग कहाँ है जो खुलुस से दस्त मिलाते है//५ #Shamawritesbebaak १२/१२/२४ ✍️ ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर"

 Unsplash फासलों से गुरेज क्या करना,फासले कुर्बते बढ़ाते है,
बात तो सही है,अक्सर ये हिजरते भी कराते है//१

मेरी कुर्बानिओं को भुलाकर अब मुझपे ऊँगली उठाते है,
लोगो ये नफरतों के आलम कैसे कैसे मन्सुबे बनाते है//२

बारहा लज्जतें तो उल्फत मे ही बरकरार रही है,हरसु
     वो खुदको बड़गर बताकर्,दूसरों को कमतर बताते है//३

या रब शादाब रख उनको जो जमीर से ज़िंदा है,
ये बेजमीर वाले तो इंसानियत को हद पार रुलाते है//४

देखा है"शमा"ने नफरतों मे फासला ए हिजरतों को,
रब्बा वो लोग कहाँ है जो खुलुस से दस्त मिलाते है//५
#Shamawritesbebaak 
१२/१२/२४ ✍️

©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

Unsplash फासलों से गुरेज क्या करना,फासले कुर्बते बढ़ाते है, बात तो सही है,अक्सर ये हिजरते भी कराते है//१ मेरी कुर्बानिओं को भुलाकर अब मुझपे ऊँगली उठाते है, लोगो ये नफरतों के आलम कैसे कैसे मन्सुबे बनाते है//२ बारहा लज्जतें तो उल्फत मे ही बरकरार रही है,हरसु वो खुदको बड़गर बताकर्,दूसरों को कमतर बताते है//३ या रब शादाब रख उनको जो जमीर से ज़िंदा है, ये बेजमीर वाले तो इंसानियत को हद पार रुलाते है//४ देखा है"शमा"ने नफरतों मे फासला ए हिजरतों को, रब्बा वो लोग कहाँ है जो खुलुस से दस्त मिलाते है//५ #Shamawritesbebaak १२/१२/२४ ✍️ ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

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मेरी कुर्बानिओं को भुलाकर अब मुझपे ऊँगली उठाते है,ये नफरतों के आलम कैसे कैसे मनसूबे बनाते है//२

बारहा लज्जतें तो उल्फत मे ही बरकरार रही है हर्सु,वो खुदको बड़गर बताकर्,दूसरों को कमतर बताते है//३

या रब शादाब रख उनको जो जमीर से ज़िंदा है,लोगो ये बेजमीर वाले तो इंसानियत को हद पार रुलाते है//४

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