लोग समझाते हैं दूसरों को, मैं खुद ही खुद को समझाने लगी हूँ ,,,,
हर दर्द को दबा कर, अपने आँसू तकिये के सहारे छुपाने लगी हूँ ,,,,
कुछ ऐसे रख कर लबों पर मुस्कान, कितना खुश हूं मैं लोगों को ये जताने लगी हूँ ,,,,
और ये जिंदगी है यहाँ कोई चाहत मुकम्मल नहीं होती, थाम कर खुद ही खुद का हाथ खुद को मनाने लगी हूँ .....
©Khamosh Alfaaz ( Rinki )
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