देखी है जाने कितनी शामें मैंने
यूं ही तनहा ढलते हुए
वह जो तेरे साथ देखी थी एक शाम ढलते हुए
उस रात की क्यों अभी तक सुबह ना हुई
मेरे तसव्वुर में है वह आज भी
यूंही महकी हुई सी शबनमी शाम
और वह एक सुबह जो तेरे साथ
तेरे कांधे पे रखे सर को मेरे साथ जगी थी
©Saba Singh
#Saba