ये कैसा द्वंद ? अंतर्मन का। जो जीत न पाया मैं खुद | हिंदी कविता Video

"ये कैसा द्वंद ? अंतर्मन का। जो जीत न पाया मैं खुद को। हंसता है मन खुद मुझ पर, तू जीत न पाया है मुझ पर। यत्न मेरे सब व्यर्थ हुये। प्रयत्न सभी बेअर्थ हुये। ये कैसा द्वंद है ? जीवन का जो जीत न पाया मैं खुद को। कहता है जग,तू ये ना कर। तुझसे ना होगा, तू ना कर। विश्वास मेरा फिर टूट गया। हौंसला-यत्न सब छूट गया। ये कैसा द्वंद है मानव का, जो जीत न पाया मानव को। ©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal "

ये कैसा द्वंद ? अंतर्मन का। जो जीत न पाया मैं खुद को। हंसता है मन खुद मुझ पर, तू जीत न पाया है मुझ पर। यत्न मेरे सब व्यर्थ हुये। प्रयत्न सभी बेअर्थ हुये। ये कैसा द्वंद है ? जीवन का जो जीत न पाया मैं खुद को। कहता है जग,तू ये ना कर। तुझसे ना होगा, तू ना कर। विश्वास मेरा फिर टूट गया। हौंसला-यत्न सब छूट गया। ये कैसा द्वंद है मानव का, जो जीत न पाया मानव को। ©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal

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