White ठोकरें सिखा गईं तो किताबें अच्छी नहीं लगतीं | हिंदी शायरी

"White ठोकरें सिखा गईं तो किताबें अच्छी नहीं लगतीं तुम जो नहीं हो पास तो बहारें अच्छी नहीं लगतीं.. तुम बस थे जब तलक ग़ुमाँ थीं हमारी अब हमें ही हमारी निगाहें तो अच्छी नहीं लगतीं.. संभाल लेती तो तेरा सजदा करते अमीरी तेरी चौखट गरीब की आहें तो अच्छी नहीं लगतीं.. वो किसी और की किस्मत का सितारा हुए अब बीते वादे वफ़ा यादें तो अच्छी नहीं लगतीं.. नये दौर के नये नये ढंग भी सीख लीजिये ज़नाब फ़क़त गुजरे जमाने की बातें तो अच्छी नहीं लगतीं.. मिलना जरूरी है मगर कभी कभार ए दिल रोज रोज की भी मुलाकातें तो अच्छी नहीं लगतीं.. ©अज्ञात"

 White ठोकरें सिखा गईं तो किताबें अच्छी नहीं लगतीं 
तुम जो नहीं हो पास तो बहारें अच्छी नहीं लगतीं.. 

तुम बस थे जब तलक ग़ुमाँ थीं हमारी 
अब हमें ही हमारी निगाहें तो अच्छी नहीं लगतीं..

संभाल लेती तो तेरा सजदा करते अमीरी 
तेरी चौखट गरीब की आहें तो अच्छी नहीं लगतीं.. 

वो किसी और की किस्मत का सितारा हुए 
अब बीते वादे वफ़ा यादें तो अच्छी नहीं लगतीं..

नये दौर के नये नये ढंग भी सीख लीजिये ज़नाब 
फ़क़त गुजरे जमाने की बातें तो अच्छी नहीं लगतीं..

मिलना जरूरी है मगर कभी कभार ए दिल 
रोज रोज की भी मुलाकातें तो अच्छी नहीं लगतीं..

©अज्ञात

White ठोकरें सिखा गईं तो किताबें अच्छी नहीं लगतीं तुम जो नहीं हो पास तो बहारें अच्छी नहीं लगतीं.. तुम बस थे जब तलक ग़ुमाँ थीं हमारी अब हमें ही हमारी निगाहें तो अच्छी नहीं लगतीं.. संभाल लेती तो तेरा सजदा करते अमीरी तेरी चौखट गरीब की आहें तो अच्छी नहीं लगतीं.. वो किसी और की किस्मत का सितारा हुए अब बीते वादे वफ़ा यादें तो अच्छी नहीं लगतीं.. नये दौर के नये नये ढंग भी सीख लीजिये ज़नाब फ़क़त गुजरे जमाने की बातें तो अच्छी नहीं लगतीं.. मिलना जरूरी है मगर कभी कभार ए दिल रोज रोज की भी मुलाकातें तो अच्छी नहीं लगतीं.. ©अज्ञात

#दिलकश

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