उसके कोमल हाथ मेरे हाथ पर थे
और हम दोनों के जज्बात साथ थे
आसमां ने अपनी जलन दिखाई
जोड़ की बिजली कड़कती आई
छिटक कर दूर खड़ी हो गई वो
मैं भी थोड़ा सहम सहम सा गया
तभी काले बादलों ने डाला डेरा
चहुंओर फैल गया घनघोर अंधेरा
वो न मुझे दिख रही थी न शायद मैं उसे
अपने दिल की बात मैं कहता कैसे
तभी बारिश को मुझपर रहम हो आई
बूँदें उसने खूब जोरों की बरसाई
अंधेरा छंट गया अचानक छाया उजाला
मैंने पलभर में अपने दिल का हाल कह डाला
वो भी स्वीकार कर इज़हार ए दिल कर बैठी
बात जो बिगड़ रही थी वो बध गई।
©Rita Jha
मेरी कहानी