रोशनी से धुंध टकराती रही जिंदगी यूंहि चली जाती | हिंदी कविता Vi

"  रोशनी से धुंध टकराती रही जिंदगी यूंहि चली जाती रही छांव ना,पर छांव जैसी धूप में मृग-तृष्णा झील बन आती रही ©Bhagat Singh "

  रोशनी से धुंध टकराती रही जिंदगी यूंहि चली जाती रही छांव ना,पर छांव जैसी धूप में मृग-तृष्णा झील बन आती रही ©Bhagat Singh

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