इस कारे-जहाँ में इंसान को उन बातों के लिए भी जवाब-

"इस कारे-जहाँ में इंसान को उन बातों के लिए भी जवाब-दाह होना पड़ता है जो उसके इख्तियार में ही नहीं होती, जैसे! चेहरा, रंगत, बदन, क़द क़ामत वगैरा, ओर सीरत व किरदार जैसी चीजें जो इख़्तियारी हुआ करती हैं वो तरजीहात की सफ़ में सबसे आख़िर में खड़े अपनी ना-क़दरी पर मातम-कुनां होते हैं, मुझे खूबसूरत चेहरों से ज़्यादा उजले रवय्ये मुतास्सिर करते हैं,,,, (मुहब्बत काला जादू है) ©Haider Khan Idrees"

 इस कारे-जहाँ में इंसान को उन बातों के लिए भी जवाब-दाह होना पड़ता है जो उसके इख्तियार में ही नहीं होती, जैसे! चेहरा, रंगत, बदन, क़द क़ामत वगैरा,
ओर सीरत व किरदार जैसी चीजें जो इख़्तियारी हुआ करती हैं वो तरजीहात की सफ़ में सबसे आख़िर में खड़े अपनी ना-क़दरी पर मातम-कुनां होते हैं,
मुझे खूबसूरत चेहरों से ज़्यादा उजले रवय्ये मुतास्सिर करते हैं,,,,

(मुहब्बत काला जादू है)

©Haider Khan Idrees

इस कारे-जहाँ में इंसान को उन बातों के लिए भी जवाब-दाह होना पड़ता है जो उसके इख्तियार में ही नहीं होती, जैसे! चेहरा, रंगत, बदन, क़द क़ामत वगैरा, ओर सीरत व किरदार जैसी चीजें जो इख़्तियारी हुआ करती हैं वो तरजीहात की सफ़ में सबसे आख़िर में खड़े अपनी ना-क़दरी पर मातम-कुनां होते हैं, मुझे खूबसूरत चेहरों से ज़्यादा उजले रवय्ये मुतास्सिर करते हैं,,,, (मुहब्बत काला जादू है) ©Haider Khan Idrees

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