इस कारे-जहाँ में इंसान को उन बातों के लिए भी जवाब-दाह होना पड़ता है जो उसके इख्तियार में ही नहीं होती, जैसे! चेहरा, रंगत, बदन, क़द क़ामत वगैरा,
ओर सीरत व किरदार जैसी चीजें जो इख़्तियारी हुआ करती हैं वो तरजीहात की सफ़ में सबसे आख़िर में खड़े अपनी ना-क़दरी पर मातम-कुनां होते हैं,
मुझे खूबसूरत चेहरों से ज़्यादा उजले रवय्ये मुतास्सिर करते हैं,,,,
(मुहब्बत काला जादू है)
©Haider Khan Idrees
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