ओढ़ी मैंने हरी चुनरिया
पहना सब श्रंगार
बन गई देखो पिय प्रिया मिलन को हुई तैयार
आज मनाऊं तीज सखी संग
मन में हर्ष अपार
ओढ़ी मैंने हरी चुनरिया
पहना सब श्रंगार
मांग भरी सिंदूर सजाया,
बिंदी नथुनी से प्रीतम का प्यार
गजरे की खुशबू से महका मेरा घर संसार
हाथों में हैं नौ-नौ चूड़ी ,
कंगन के खनखन की ताल
मंगलसूत्र सुहाग की अमिट निशानी
करधनी जैसे कमर का जाल ,
ओढ़ी मैंने हरी चुनरिया पहना सब श्रंगार
नाखूनों को भी हरा रंग लिया
ऐसा छाया सावन का खुमार,
पैरों की पायल बिछुवे से होता मेरा पूरा श्रंगार ,
ओढ़ी मैंने हरी चुनरिया पहना सब श्रंगार
आज महावर भर भर एड़ी
मेहंदी से मेरी सजी हथेली
आंख में सुरमा होठ पर लाली
आओ सुहागन संग सहेली
और ओढ़ आई हूं लज्जा,
शर्म बनी आंखों का काजल,
निष्ठा प्रेम त्याग समर्पण
यह सब औरतों का सच्चा आंचल
तीज माता के चरण पखारें
कर जोड़ जोड़ कर उन्हें मनाएं
रखें अमर वे सौभाग्य हमारा,
सुख प्रेम से करें घर में उजियारा।
--नेहा सोनी'सनेह'✨🦋
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