White ग़ज़ल
मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही
दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही
जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को
बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही
दीन ईमान वो बेच खाते रहे
जिनके आगे मेरी बोलती चुप रही
बोलियां जो बहुत बोलते थे यहाँ
उन पे कोयल की जादूगरी चुप रही
वो जो मरकर जियें या वो जीकर मरें
देखकर यह बुरी त्रासदी चुप रही ।।
बाढ़ में ढ़ह गये गाँव घर और पुल ।
और टेबल पे फ़ाइल पड़ी चुप रही ।।
देखकर ख़ार को हम भी खामोश थे ।
जो मिली थी प्रखर वो खुशी चुप रही ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल
मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही
दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही
जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को
बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही