बैठे थे किसी शाम ज़ब अपनी दहलीज पर हम, तुम्हें मुक़म | हिंदी शायरी

"बैठे थे किसी शाम ज़ब अपनी दहलीज पर हम, तुम्हें मुक़म्मल पाने का ख़याल आ रहा था, तुम मेरी मसरूफियत रखती हो या नहीं, मेरे मन में ये इक सवाल आ रहा था… ©Jagrit Jaisawal"

 बैठे थे किसी शाम ज़ब अपनी दहलीज पर हम,
तुम्हें मुक़म्मल पाने का ख़याल आ रहा था,
तुम मेरी मसरूफियत रखती हो या नहीं,
मेरे मन में ये इक सवाल आ रहा था…

©Jagrit Jaisawal

बैठे थे किसी शाम ज़ब अपनी दहलीज पर हम, तुम्हें मुक़म्मल पाने का ख़याल आ रहा था, तुम मेरी मसरूफियत रखती हो या नहीं, मेरे मन में ये इक सवाल आ रहा था… ©Jagrit Jaisawal

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