ममता के सागर से भरी लफ्जो से बयाँ करना मुमकिन कहा | हिंदी Quotes

"ममता के सागर से भरी लफ्जो से बयाँ करना मुमकिन कहाँ तेरे बिन तो बंजर-ए-रेगिस्तान सा लगता है ये सम्पूर्ण जहाँ जहाँ पापा लगाए सवालों की झड़ी, वहा बन जाती है अटल ढाल पल भर में करा देती है शांत, फैला अपने ममता का जंजाल। अपने लहू का एक-एक कतरा तज कर बड़ी सन्ताप से है सींचा जैसे एक-एक धागे को सींच कर बुना जाता है सम्पूर्ण गलीचा मेरी तो जन्नत बसती है तेरी अकलुश व उर्जित आँचल में जैसे काया को शीतलता व सुकून मिलता है हिमाचल में। मेरा सारा अस्तित्व सिमटा है तेरे पुनीत चरणों के रज में वैद्य बनकर सदा सृजित करती हो जो मेरे हर एक मर्ज में मेरे सोने के लिए सदा बन जाती हो जमीन पर मखमली बिछौना आज भी जीवंत है बचपन में मेले में खरीदा सब अनमोल खिलौना। बच्चा बन आँचल में सो कर जन्नत की मनोरम फिजा में खोना चाहता हूँ बचपन वाला खोए प्यार का ओहदा एक बार फिर से वापस पाना चाहता हूँ। ~आशुतोष यादव ©आशुतोष यादव"

 ममता के सागर से भरी लफ्जो 
से बयाँ करना मुमकिन कहाँ
तेरे बिन तो बंजर-ए-रेगिस्तान 
सा लगता है ये सम्पूर्ण जहाँ
जहाँ पापा लगाए सवालों की झड़ी,
वहा बन जाती है अटल ढाल
पल भर में करा देती है शांत, 
फैला अपने ममता का जंजाल।
अपने लहू का एक-एक कतरा तज 
कर बड़ी सन्ताप से है सींचा
जैसे एक-एक धागे को सींच कर
बुना जाता है सम्पूर्ण गलीचा
मेरी तो जन्नत बसती है तेरी 
अकलुश व उर्जित आँचल में
जैसे काया को शीतलता व
सुकून मिलता है हिमाचल में।

मेरा सारा अस्तित्व सिमटा है 
तेरे पुनीत चरणों के रज में
वैद्य बनकर सदा सृजित करती 
हो जो मेरे हर एक मर्ज में
मेरे सोने के लिए सदा बन जाती
हो जमीन पर मखमली बिछौना
आज भी जीवंत है बचपन में मेले 
में खरीदा सब अनमोल खिलौना।
बच्चा बन आँचल में सो कर जन्नत
की मनोरम फिजा में खोना चाहता हूँ
बचपन वाला खोए प्यार का ओहदा
एक बार फिर से वापस पाना चाहता हूँ।

            ~आशुतोष यादव

©आशुतोष यादव

ममता के सागर से भरी लफ्जो से बयाँ करना मुमकिन कहाँ तेरे बिन तो बंजर-ए-रेगिस्तान सा लगता है ये सम्पूर्ण जहाँ जहाँ पापा लगाए सवालों की झड़ी, वहा बन जाती है अटल ढाल पल भर में करा देती है शांत, फैला अपने ममता का जंजाल। अपने लहू का एक-एक कतरा तज कर बड़ी सन्ताप से है सींचा जैसे एक-एक धागे को सींच कर बुना जाता है सम्पूर्ण गलीचा मेरी तो जन्नत बसती है तेरी अकलुश व उर्जित आँचल में जैसे काया को शीतलता व सुकून मिलता है हिमाचल में। मेरा सारा अस्तित्व सिमटा है तेरे पुनीत चरणों के रज में वैद्य बनकर सदा सृजित करती हो जो मेरे हर एक मर्ज में मेरे सोने के लिए सदा बन जाती हो जमीन पर मखमली बिछौना आज भी जीवंत है बचपन में मेले में खरीदा सब अनमोल खिलौना। बच्चा बन आँचल में सो कर जन्नत की मनोरम फिजा में खोना चाहता हूँ बचपन वाला खोए प्यार का ओहदा एक बार फिर से वापस पाना चाहता हूँ। ~आशुतोष यादव ©आशुतोष यादव

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