कुछ तो दरिया भी गुरूर करता है सबको डुबाने का, हर श

"कुछ तो दरिया भी गुरूर करता है सबको डुबाने का, हर शाम इक झलक दिखाता है सूरज को डुबाने का । यूं हर किसी का अल्फाज़ भी सबको ज़ख्म देता है, हर अल्फा़ज़ दिल पे न लेना यारों, ये तरकीब है उनकी सबको डुबाने का । मिरा मोहब्बत भी हार जाता है उनकी नफ़रत के आगे, ये तो इक पहचान है इश्क़ को डुबाने का । इन आंखों से अब सिर्फ नफरत की रौशनी दिखती है, नफरत की हर इक चाल बेहतरीन है, मोहब्बत की उजाले को डुबाने का । कभी शाम की आड़ में दो घूट जाम पी लेना, यूं तो इक पल होता है दिन के थकान को डुबाने का ।"

 कुछ तो दरिया भी गुरूर करता है सबको डुबाने का,
हर शाम इक झलक दिखाता है सूरज को डुबाने का ।

यूं हर किसी का अल्फाज़ भी सबको ज़ख्म देता है,
हर अल्फा़ज़ दिल पे न लेना यारों, ये तरकीब है उनकी सबको डुबाने का ।

मिरा मोहब्बत भी हार जाता है उनकी नफ़रत के आगे,
ये तो इक पहचान है इश्क़ को डुबाने का ।

इन आंखों से अब सिर्फ नफरत की रौशनी दिखती है,
नफरत की हर इक चाल बेहतरीन है, मोहब्बत की उजाले को डुबाने का ।

कभी शाम की आड़ में दो घूट जाम पी लेना,
यूं तो इक पल होता है दिन के थकान को डुबाने का ।

कुछ तो दरिया भी गुरूर करता है सबको डुबाने का, हर शाम इक झलक दिखाता है सूरज को डुबाने का । यूं हर किसी का अल्फाज़ भी सबको ज़ख्म देता है, हर अल्फा़ज़ दिल पे न लेना यारों, ये तरकीब है उनकी सबको डुबाने का । मिरा मोहब्बत भी हार जाता है उनकी नफ़रत के आगे, ये तो इक पहचान है इश्क़ को डुबाने का । इन आंखों से अब सिर्फ नफरत की रौशनी दिखती है, नफरत की हर इक चाल बेहतरीन है, मोहब्बत की उजाले को डुबाने का । कभी शाम की आड़ में दो घूट जाम पी लेना, यूं तो इक पल होता है दिन के थकान को डुबाने का ।

#dawn

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