""उड़ती चिड़िया भी हूँ,
मुझपे पहरा भी है,
है मयस्सर ख़ुशी,
ज़ख्म गहरा भी है।
मेरे रब तेरी कैसी है कारीगरी,
मुझमें दरिया भी है,
मुझमें सहरा भी है।"
- मुमताज़ नसीम"
"उड़ती चिड़िया भी हूँ,
मुझपे पहरा भी है,
है मयस्सर ख़ुशी,
ज़ख्म गहरा भी है।
मेरे रब तेरी कैसी है कारीगरी,
मुझमें दरिया भी है,
मुझमें सहरा भी है।"
- मुमताज़ नसीम