मैं अकेली इस जीवन के पथ पर चलना मुझे अकेले हैं।
सगा न कोई साथी है। अपना बस नाम का रिश्ता हैं।
इस जग के रिश्तों से अच्छा आसमान का परिंदा हैं।
जो उड़े भले ही उच्चे गगन पर पर नजरें जमीं पर रखता हैं।
कद में छोटे रिश्तों को यहां व्यर्थ ही समझा जाता हैं।
भरा पीटारा हो धन दौलत का तो परायों को भी अपनाया जाता हैं।
दुर के ढोल सुहावने ये तो रिश्तों की ही व्याख्या है।
कोरोना काल ने दो गज दूरी से यह हमें समझाया है।
रिश्ते एक मोती की माला कच्चे धागे बांधी जाती है।
सौहरत दौलत का दम न हो धागे मैं तो ऐ छिनद छिनद बिखर जाती हैं।
धरती नापी जा सकती है लेकिन रिश्तों को नापना आशान नहीं
व्यर्थ है इन रिश्तो में पढ़ना ये इन्सान हैं कोई भगवान नहीं
©DEEPIKA BELWAL
रिश्ते
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