नादान परिंदे की दास्तां पिंजरें में बंद करके मुझक | हिंदी कविता

"नादान परिंदे की दास्तां पिंजरें में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो, मैं तो हूं इक नादान परिंदा, मेरी नादानी पर तुम क्यूं वार करतें हो, पिंजरें में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो। पिंजरे में बंद करके मुझकों, तुम क्यूं अत्याचार करते हो, मैं तो हूं आकाश में उड़ने वाला परिंदा, मेरे पंखों की उड़ान को तुम क्यूं बेकार करतें हो, पिंजरे में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो। पिंजरें मैं बंद करके मुझकों, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो, मैं तो हूं भगवान का डाकिया, मुझ पर फिर तुम क्यूं प्रहार करतें हो, पिंजरे में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो। पिंजरे में बंद करके मुझकों, तुम क्यूं अत्याचार करते हो, मैं तो हूं इक आजाद परिंदा, मुझको फिर तुम क्यूं गुलाम करतें हो, पिंजरे में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो।। ©Meenakshi Sharma"

 नादान परिंदे की दास्तां

पिंजरें में बंद करके मुझको,
तुम क्यूं अत्याचार करतें हो,
मैं तो हूं इक नादान परिंदा,
मेरी नादानी पर तुम क्यूं वार करतें हो,
पिंजरें में बंद करके मुझको,
तुम क्यूं अत्याचार करतें हो।
पिंजरे में बंद करके मुझकों,
तुम क्यूं अत्याचार करते हो,
मैं तो हूं आकाश में उड़ने वाला परिंदा,
मेरे पंखों की उड़ान को तुम क्यूं बेकार करतें हो,
पिंजरे में बंद करके मुझको,
तुम क्यूं अत्याचार करतें हो।
पिंजरें मैं बंद करके मुझकों,
तुम क्यूं अत्याचार करतें हो,
मैं तो हूं भगवान का डाकिया,
मुझ पर फिर तुम क्यूं प्रहार करतें हो,
पिंजरे में बंद करके मुझको,
तुम क्यूं अत्याचार करतें हो।
पिंजरे में बंद करके मुझकों,
तुम क्यूं अत्याचार करते हो,
मैं तो हूं इक आजाद परिंदा,
मुझको फिर तुम क्यूं गुलाम करतें हो,
पिंजरे में बंद करके मुझको,
तुम क्यूं अत्याचार करतें हो।।

©Meenakshi Sharma

नादान परिंदे की दास्तां पिंजरें में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो, मैं तो हूं इक नादान परिंदा, मेरी नादानी पर तुम क्यूं वार करतें हो, पिंजरें में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो। पिंजरे में बंद करके मुझकों, तुम क्यूं अत्याचार करते हो, मैं तो हूं आकाश में उड़ने वाला परिंदा, मेरे पंखों की उड़ान को तुम क्यूं बेकार करतें हो, पिंजरे में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो। पिंजरें मैं बंद करके मुझकों, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो, मैं तो हूं भगवान का डाकिया, मुझ पर फिर तुम क्यूं प्रहार करतें हो, पिंजरे में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो। पिंजरे में बंद करके मुझकों, तुम क्यूं अत्याचार करते हो, मैं तो हूं इक आजाद परिंदा, मुझको फिर तुम क्यूं गुलाम करतें हो, पिंजरे में बंद करके मुझको, तुम क्यूं अत्याचार करतें हो।। ©Meenakshi Sharma

नादान परिंदे की दास्तां

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