पराये घर को मान कर अपना, ब्याह कर वो आती है। न्यो | हिंदी Poetry

"पराये घर को मान कर अपना, ब्याह कर वो आती है। न्योछावर कर यौवन सुंदरता, तेरा घर संसार बसाती है। आंगन को वो तेरे अपनी, निःस्वार्थ खुशबू से महकाती है। भूलकर सारे सपने अपने , कुलवधू का फर्ज निभाती है। दानव बन जाते हो तुम, उस देवी को तड़पाते हो, कागज़ के रुपयों के ख़ातिर, घर की लछमी जलाते ह। फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो। ©Ritika Vijay Shrivastava"

 पराये घर को मान कर अपना, 
ब्याह कर वो आती है।
न्योछावर कर यौवन सुंदरता, 
तेरा घर संसार बसाती है।
आंगन को वो तेरे अपनी, 
निःस्वार्थ खुशबू से महकाती है।
भूलकर सारे सपने अपने , 
कुलवधू का फर्ज निभाती है।
दानव बन जाते हो तुम, 
उस देवी को तड़पाते हो,
कागज़ के रुपयों के ख़ातिर,
घर की लछमी जलाते ह।
फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो।

©Ritika Vijay Shrivastava

पराये घर को मान कर अपना, ब्याह कर वो आती है। न्योछावर कर यौवन सुंदरता, तेरा घर संसार बसाती है। आंगन को वो तेरे अपनी, निःस्वार्थ खुशबू से महकाती है। भूलकर सारे सपने अपने , कुलवधू का फर्ज निभाती है। दानव बन जाते हो तुम, उस देवी को तड़पाते हो, कागज़ के रुपयों के ख़ातिर, घर की लछमी जलाते ह। फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो। ©Ritika Vijay Shrivastava

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