White कामया | हिंदी विचार

"White कामयाबी...? कितनी जल्दी तुम इतने बड़े हो गए ना दो दशक यूं बीते मानो रेत हाथो से फिसल गई ये दशको का सफर आंखे नम कर देता है लगता है अभी तो तुम छोटे से थे, अंजान बेखौफ गलियो में घूमना खेलना माँ को परेशान करना पापा से जिद करना कितना पसंद था तुम्हें, भविष्य की फिक्र किए बिना वर्तमान में जीना तुम्हें अता था, इतने सालो में तुम कितना बदल गए हो ना शोर मचाने वाला अब घर में शांत अंधेरा कमरा ढूंढता है जहां चिड़िया भी पर ना मर सके, 9 से 6 की नौकरी अब तुम्हारी जिंदगी बन गई है, वो ऊंची उड़ान भरने का सपना किसी किताब में बंद धूल खा रहा है। अब तुम्हारा मन नहीं करता बहस करने का चिल्लाने का...माना की अब तुम बहुत जिम्मेदार बन गए हो घर के खर्चे में हाथ बटाते हो, पापा के साथ कंधे से कंधा मिला के खड़े रहते हो, तुम खुश हो खुद को खो के एक अच्छा बेटा बनने की काबिलियत पा कर, तुम्हारे पापा ने भी तो यहीं किया था...अक्सर इस परंपरा को बहुत कम लोग तोड़ पाते हैं, तुम खुद को व्यस्त बताते हो इतना व्यस्त की उस व्यस्तता का भार तुम्हारी आंखो की चमक को धुंधला करने में समर्थ हो गई है...क्या तुम्हें नहीं याद आता वो दिन जब तुम्हारी हंसी से पूरा घर खिल उठता था और मां गुदगुदाहट के माहौल में अपनी बांछे फैलाए तुम्हें अपने अक्षों में भर लेती थी....कितना सुकून था उसके आंचल में, स्थिर कर देने वाली यादें, जिन्हे बस महसूस किया जा सकता है, सुनो तुम इन यादों को समेट लेना अपनी बाहो में, तस्वीरों की छाप जिंदगी की किताब में संजो लेना, तुम मेहसूस करना मां की बनई रोटी और पापा की प्यार भरी गुस्से वाली डांट क्योंकि बीता हुआ पल धुंधलाने लगता है,और साथ रह जाती है तो बस यादें और इन यादो के साथ तुम,हमसब बाकी की जिंदगी बिता देते हैं जिसमें सुकून तो होता है साथ ही होती है ग्लानी, नम आंखे और बहुत कुछ पीछे छूट जाने का पश्चतावा और एक बहुत बड़ा शब्द 'काश'....। ©priya prajapati"

 White                                        कामयाबी...?

कितनी जल्दी तुम इतने बड़े हो गए ना दो दशक यूं बीते मानो रेत हाथो से फिसल गई ये दशको का सफर आंखे नम कर देता है लगता है अभी तो तुम छोटे से थे, अंजान बेखौफ गलियो में घूमना खेलना माँ को परेशान करना पापा से जिद करना कितना पसंद था तुम्हें, भविष्य की फिक्र किए बिना वर्तमान में जीना तुम्हें अता था, इतने सालो में तुम कितना बदल गए हो ना शोर मचाने वाला अब घर में शांत अंधेरा कमरा ढूंढता है जहां चिड़िया भी पर ना मर सके, 9 से 6 की नौकरी अब तुम्हारी जिंदगी बन गई है, वो ऊंची उड़ान भरने का सपना किसी किताब में बंद धूल खा रहा है। अब तुम्हारा मन नहीं करता बहस करने का चिल्लाने का...माना की अब तुम बहुत जिम्मेदार बन गए हो घर के खर्चे में हाथ बटाते हो, पापा के साथ कंधे से कंधा मिला  के खड़े रहते हो, तुम खुश हो खुद को खो के एक अच्छा बेटा बनने की काबिलियत पा कर, तुम्हारे पापा ने भी तो यहीं किया था...अक्सर इस परंपरा को बहुत कम लोग तोड़ पाते हैं, तुम खुद को व्यस्त बताते हो इतना व्यस्त की उस व्यस्तता का भार तुम्हारी आंखो की चमक को धुंधला करने में समर्थ हो गई है...क्या तुम्हें नहीं याद आता वो दिन जब तुम्हारी हंसी से पूरा घर खिल उठता था और मां गुदगुदाहट के माहौल में अपनी बांछे फैलाए तुम्हें अपने अक्षों में भर लेती थी....कितना सुकून था उसके आंचल में, स्थिर कर देने वाली यादें, जिन्हे बस महसूस किया जा सकता है, सुनो तुम इन यादों को समेट लेना अपनी बाहो में, तस्वीरों की छाप जिंदगी की किताब में संजो लेना, तुम मेहसूस करना मां की बनई रोटी और पापा की प्यार भरी गुस्से वाली डांट क्योंकि बीता हुआ पल धुंधलाने लगता है,और साथ रह जाती है तो बस यादें और इन यादो के साथ तुम,हमसब बाकी की जिंदगी बिता देते हैं जिसमें सुकून तो होता है साथ ही होती है ग्लानी, नम आंखे और बहुत कुछ पीछे छूट जाने का पश्चतावा और एक बहुत बड़ा शब्द 'काश'....।

©priya prajapati

White कामयाबी...? कितनी जल्दी तुम इतने बड़े हो गए ना दो दशक यूं बीते मानो रेत हाथो से फिसल गई ये दशको का सफर आंखे नम कर देता है लगता है अभी तो तुम छोटे से थे, अंजान बेखौफ गलियो में घूमना खेलना माँ को परेशान करना पापा से जिद करना कितना पसंद था तुम्हें, भविष्य की फिक्र किए बिना वर्तमान में जीना तुम्हें अता था, इतने सालो में तुम कितना बदल गए हो ना शोर मचाने वाला अब घर में शांत अंधेरा कमरा ढूंढता है जहां चिड़िया भी पर ना मर सके, 9 से 6 की नौकरी अब तुम्हारी जिंदगी बन गई है, वो ऊंची उड़ान भरने का सपना किसी किताब में बंद धूल खा रहा है। अब तुम्हारा मन नहीं करता बहस करने का चिल्लाने का...माना की अब तुम बहुत जिम्मेदार बन गए हो घर के खर्चे में हाथ बटाते हो, पापा के साथ कंधे से कंधा मिला के खड़े रहते हो, तुम खुश हो खुद को खो के एक अच्छा बेटा बनने की काबिलियत पा कर, तुम्हारे पापा ने भी तो यहीं किया था...अक्सर इस परंपरा को बहुत कम लोग तोड़ पाते हैं, तुम खुद को व्यस्त बताते हो इतना व्यस्त की उस व्यस्तता का भार तुम्हारी आंखो की चमक को धुंधला करने में समर्थ हो गई है...क्या तुम्हें नहीं याद आता वो दिन जब तुम्हारी हंसी से पूरा घर खिल उठता था और मां गुदगुदाहट के माहौल में अपनी बांछे फैलाए तुम्हें अपने अक्षों में भर लेती थी....कितना सुकून था उसके आंचल में, स्थिर कर देने वाली यादें, जिन्हे बस महसूस किया जा सकता है, सुनो तुम इन यादों को समेट लेना अपनी बाहो में, तस्वीरों की छाप जिंदगी की किताब में संजो लेना, तुम मेहसूस करना मां की बनई रोटी और पापा की प्यार भरी गुस्से वाली डांट क्योंकि बीता हुआ पल धुंधलाने लगता है,और साथ रह जाती है तो बस यादें और इन यादो के साथ तुम,हमसब बाकी की जिंदगी बिता देते हैं जिसमें सुकून तो होता है साथ ही होती है ग्लानी, नम आंखे और बहुत कुछ पीछे छूट जाने का पश्चतावा और एक बहुत बड़ा शब्द 'काश'....। ©priya prajapati

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