मेरी पुस्तक | मराठी कविता

"मेरी पुस्तक जज़्बे के पंख से....... मुसाफ़िर राहें मुश्किल है ,ज़रा सा संभल करके चल। हिम्मत के बल से मुश्किल को, करे तो सरल करके चल। सोने सा वही निखरता है, जो जलता है, जो तपता है, कटु,पर सत्य 'अशोका' यही, इसी पे अमल करके चल।। Ashoka Bishnoi"

 मेरी पुस्तक                                                        
               जज़्बे के पंख से.......                                           
                             
मुसाफ़िर राहें मुश्किल है ,ज़रा सा संभल करके चल।
हिम्मत के बल से मुश्किल को, करे तो सरल करके चल।
सोने सा वही निखरता है, जो जलता है, जो तपता है, 
कटु,पर सत्य 'अशोका' यही, इसी पे अमल करके चल।। 
                       

                                    Ashoka Bishnoi

मेरी पुस्तक जज़्बे के पंख से....... मुसाफ़िर राहें मुश्किल है ,ज़रा सा संभल करके चल। हिम्मत के बल से मुश्किल को, करे तो सरल करके चल। सोने सा वही निखरता है, जो जलता है, जो तपता है, कटु,पर सत्य 'अशोका' यही, इसी पे अमल करके चल।। Ashoka Bishnoi

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