त्राहि-त्राहि हो उठा है, शहर से गांव तक, इधर-उधर आ | हिंदी कविता

"त्राहि-त्राहि हो उठा है, शहर से गांव तक, इधर-उधर आप, अभी नहीं जाइए..। आठों ही पहर आप, दिन दोपहर आप, मानवता दिखाइए., घर में ही रहिए..। अब हाल बेहाल है, सबका बुरा हाल है, दूरियां बनाके ख़ुद, देश को बचाइए..। बेचारे को हमसब, पागल ही जानकर, नेताजी की बात सब, हँसी में उड़ाइए.। ✍️__अमर बिहारी_ समस्तीपुर (बिहार) ©Kavi Amar Bihari"

 त्राहि-त्राहि हो उठा है, शहर से गांव तक,
इधर-उधर आप, अभी नहीं जाइए..।
आठों ही पहर आप, दिन दोपहर आप,
मानवता दिखाइए., घर में ही रहिए..।

अब हाल बेहाल है, सबका बुरा हाल है,
दूरियां बनाके ख़ुद, देश को बचाइए..।
बेचारे को हमसब, पागल ही जानकर,
नेताजी की बात सब, हँसी में उड़ाइए.।

                ✍️__अमर बिहारी_
                  समस्तीपुर (बिहार)

©Kavi Amar Bihari

त्राहि-त्राहि हो उठा है, शहर से गांव तक, इधर-उधर आप, अभी नहीं जाइए..। आठों ही पहर आप, दिन दोपहर आप, मानवता दिखाइए., घर में ही रहिए..। अब हाल बेहाल है, सबका बुरा हाल है, दूरियां बनाके ख़ुद, देश को बचाइए..। बेचारे को हमसब, पागल ही जानकर, नेताजी की बात सब, हँसी में उड़ाइए.। ✍️__अमर बिहारी_ समस्तीपुर (बिहार) ©Kavi Amar Bihari

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