अच्छा है दर्द का कोई लबादा नही,
सबका दर्द एक सा,
सबकी चुभन एक सी,
आँशुओ की क़ीमत जो जान गया,
वही दर्द को पहचान गया,
कहाँ चले खोजने उसे जिसकी कोई सूरत नही,
कहीं हाँथ जोड़कर,
कहीं माथे को चूमकर,
कभी झुककर भी कहाँ वह मिलता है,
मगर अगर कोई ठिकाना दर्द का भी होता,
तो सबका बोरिया-बिस्तर वही होता।
©Prashant Roy
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