तेरा मेरा वो नाता, यूं तो काफी गहरा था,
मैं बस थोड़ी सस्ती थी,पर तू हीरे सा महंगा था।
बारिशें उस बरस जब आईं थी, साथ ताज़गी लायी थीं,
मैं बस थोड़ी भीगी थी, पर तू सूरज सा चमका था।
फूलों के मौसम में, बहारें जब जीवन में छाई थीं,
मैं बस थोड़ा मुस्काई थी, पर तू तो खुलकर हंसता था।
राहें हमारी नेक ही थी, मंज़िल हमारी एक ही थी,
मैं बस थोड़ा धीरे थी, पर तेज़ तू बिजली सा निकला था।
फिर बादल जब छाए थे, ग़म हमनें भी उठाये थे,
मैं बस थोड़ी गरजी थी, पर तू तो जमकर बरसा था।
तूने दामन छोड़ दिया, प्यार भरा दिल तोड़ दिया,
मेरी दुनिया तो थोड़ा उजड़ी थी, पर तेरा खूबसूरत घरौंदा जमता था।
जीवन को मैनें अपना लिया, आंखों से पर्दा हटा लिया,
कि हां मैं थोड़ी सस्ती थी, और तू हिरे सा महंगा था।
फिर अब क्यूं ग़म उठाता है, अब क्यूँ आवाज़ लगाता है,
क्यूँ बांसुरी बजाता है, क्यूँ सपनो में आता है,
मैं तो आज भी थोड़ी सस्ती हूँ, पर तू हीरे से महंगा है।
©Manisha Sharma
#NationalSimplicityDay