**साए से भी डरते हैं हम** साए से भी डरते हैं हम | हिंदी Sad

"**साए से भी डरते हैं हम** साए से भी डरते हैं हम, रात के अंधेरों में कहीं खो से जाते हैं हम। हर परछाई में छुपे हैं कुछ डर, जिनके सामने खुद को कमजोर पाते हैं हम। दर्द का अक्स है हर साया, जाने कौन सी यादों का खौफ लाया। बीते लम्हों के घाव दिल में गहरे, उनके निशां से अब भी थर-थराते हैं हम। खामोशी में चीखती हैं कई बातें, ख़्वाबों की गलियों में खोई हुई मुलाकातें। जो था कभी अपना, आज अजनबी सा लगता, उसी के ख्यालों से कांपते हैं हम। रात के सन्नाटे में दिल के राज़ उभरते, वो भूले-बिसरे पल फिर से सताते। जिन रिश्तों ने दिया था कभी सहारा, उनकी यादों से अब जलते हैं हम। साया जब तक था, न थी इतनी दूरी, अब उसी की गैर-मौजूदगी से है ये मजबूरी। जो कभी हमारे थे, अब पराए से हैं, उन्हीं के साए से भी अब डरते हैं हम। ©Deepz_Talk"

 **साए से भी डरते हैं हम**  

साए से भी डरते हैं हम,  
रात के अंधेरों में कहीं खो से जाते हैं हम।  
हर परछाई में छुपे हैं कुछ डर,  
जिनके सामने खुद को कमजोर पाते हैं हम।  

दर्द का अक्स है हर साया,  
जाने कौन सी यादों का खौफ लाया।  
बीते लम्हों के घाव दिल में गहरे,  
उनके निशां से अब भी थर-थराते हैं हम।  

खामोशी में चीखती हैं कई बातें,  
ख़्वाबों की गलियों में खोई हुई मुलाकातें।  
जो था कभी अपना, आज अजनबी सा लगता,  
उसी के ख्यालों से कांपते हैं हम।  

रात के सन्नाटे में दिल के राज़ उभरते,  
वो भूले-बिसरे पल फिर से सताते।  
जिन रिश्तों ने दिया था कभी सहारा,  
उनकी यादों से अब जलते हैं हम।  

साया जब तक था, न थी इतनी दूरी,  
अब उसी की गैर-मौजूदगी से है ये मजबूरी।  
जो कभी हमारे थे, अब पराए से हैं,  
उन्हीं के साए से भी अब डरते हैं हम।

©Deepz_Talk

**साए से भी डरते हैं हम** साए से भी डरते हैं हम, रात के अंधेरों में कहीं खो से जाते हैं हम। हर परछाई में छुपे हैं कुछ डर, जिनके सामने खुद को कमजोर पाते हैं हम। दर्द का अक्स है हर साया, जाने कौन सी यादों का खौफ लाया। बीते लम्हों के घाव दिल में गहरे, उनके निशां से अब भी थर-थराते हैं हम। खामोशी में चीखती हैं कई बातें, ख़्वाबों की गलियों में खोई हुई मुलाकातें। जो था कभी अपना, आज अजनबी सा लगता, उसी के ख्यालों से कांपते हैं हम। रात के सन्नाटे में दिल के राज़ उभरते, वो भूले-बिसरे पल फिर से सताते। जिन रिश्तों ने दिया था कभी सहारा, उनकी यादों से अब जलते हैं हम। साया जब तक था, न थी इतनी दूरी, अब उसी की गैर-मौजूदगी से है ये मजबूरी। जो कभी हमारे थे, अब पराए से हैं, उन्हीं के साए से भी अब डरते हैं हम। ©Deepz_Talk

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