मैं हूँ , मेरा दिल है तेरा तसव्वुर किए शाम की तनहाई है..
काश तुम भी होते...तो कितना अच्छा होता..?
मैं हूँ,ये नजारें है खामोश फिजाओं के दिलकश इशारे हैं.
काश तुम भी दिख जाते.तो कितना अच्छा होता..?
जीत की आदत.अच्छी होती है मगर
कुछ रिश्तो में..हार जाना भी बेहतर होता है,
*कुछ ख़त आज डाकघर से, लौट आए हैं,...*
*डाकिये ने कहा कि, जज़्बातों का कोई पता नहीं होता...!
©Rihan khan
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