सावन का मौसम फिर वही ज़ख्म पुराने ले आया,
अंखियों के साथ-साथ;
अब आसमान भी बारिश करने को है।।
जिधर निगाह जाती वही इंसान बने जंगली,
बुद्धि है मगर सही उपयोग करना नहीं आता,
ज़लील करे बिना;
एक दुसरे का कभी अपनो का ही मन नहीं भरता ,
गैरों को तो छोड़िए;
या अपने ही अपनों का दम घोंटने में लगे पड़े हैं ।।
कितने सावन बित चले लेकिन यह जख्म कभी भरे नहीं।।
©I_surbhiladha
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