आ अब गांव चलते हैं
धुल बुकनी पर सनकतें हैं
घटाओं सा मचलतें हैं
महंगे फिज़ाओं से कहीं दूर
कुदरतें वादियों में चलते हैं ।
आ अब गांव चलते हैं
हंसरतें हंसी करते हैं
जहां ख्वाब बुनते हैं
किल्लतों से कोसों दूर
शुकून थामी ज़न्नत में चलते हैं ।
आ अब गांव चलते हैं
भौरों सा भनकतें हैं
पंछियों में गुन गुनातें हैं
शौरों से लेकर सबक
मनमौला घांस फुस पर चलते हैं ।
- ईशांत मोदी
आ अब गांव चलते हैं ।
#village