White बाबा नागार्जुन की कविता
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है ?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है ?
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है,
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है,
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है,
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है,
जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला,
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है,
उसी की जनवरी छब्बीस,
उसी का पंद्रह अगस्त है !
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है,
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है,
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है,
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है,
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है,
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
मजदूर की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो,
बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है !
देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो,
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है !
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है !!!!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है !!!!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है,
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है,
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है ।
©यज्ञदेव शर्मा 'शून्य'
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