हिज़्र" उधर जी नींद आंखों में इधर अश्कों का दरिय | हिंदी Shayari

""हिज़्र" उधर जी नींद आंखों में इधर अश्कों का दरिया था गले लगकर की यादों के कई रातें वो रोया था। भला वो किस तरह सोता! कहां जाता कहां छुपता! फटी चादर थी हसरत की जला ख़्वाबों का तकिया था। ~ © अलीम "

"हिज़्र" उधर जी नींद आंखों में इधर अश्कों का दरिया था गले लगकर की यादों के कई रातें वो रोया था। भला वो किस तरह सोता! कहां जाता कहां छुपता! फटी चादर थी हसरत की जला ख़्वाबों का तकिया था। ~ © अलीम

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