_जीवन की भागदौड़ में_ _क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जा | हिंदी Poetry Vide

"_जीवन की भागदौड़ में_ _क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?_हँसती-खेलती जिन्दगी भी_ _आम हो जाती है!_ एक सबेरा था_ _जब हँसकर उठते थे हम,_ और आज कई बार बिना मुस्कुराए_ _ही शाम हो जाती है!_ _कितने दूर निकल गए_ _रिश्तों को निभाते-निभाते,_ खुद को खो दिया हमने_ _अपनों को पाते-पाते।_ लोग कहते हैं_ _हम मुस्कुराते बहुत हैं,_ और हम थक गए_ _दर्द छुपाते-छुपाते! खुश हूँ और सबको_ _खुश रखता हूँ,_ लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए_ -मगर सबकी परवाह करता हूँ।_ मालूम है_ कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी_ कुछ अनमोल लोगों से_ -रिश्ते रखता हूँ ©Misti Singh "

_जीवन की भागदौड़ में_ _क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?_हँसती-खेलती जिन्दगी भी_ _आम हो जाती है!_ एक सबेरा था_ _जब हँसकर उठते थे हम,_ और आज कई बार बिना मुस्कुराए_ _ही शाम हो जाती है!_ _कितने दूर निकल गए_ _रिश्तों को निभाते-निभाते,_ खुद को खो दिया हमने_ _अपनों को पाते-पाते।_ लोग कहते हैं_ _हम मुस्कुराते बहुत हैं,_ और हम थक गए_ _दर्द छुपाते-छुपाते! खुश हूँ और सबको_ _खुश रखता हूँ,_ लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए_ -मगर सबकी परवाह करता हूँ।_ मालूम है_ कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी_ कुछ अनमोल लोगों से_ -रिश्ते रखता हूँ ©Misti Singh

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