White सोचा हुआ
कभी हुआ नहीं
जो हुआ
कभी सोचा नहीं
दोष किसका था
किसकी थी बाज़ी
वक़्त किसी का
हुआ ही नहीं
न रुकता न झुकता
न डरता न लड़ता
पागल सनकी है क्या कोई
लुटा दो चाहे पाई पाई
दो घड़ी ज़्यादा
किसी को मिला ही नहीं
वक्त किसी का
हुआ ही नहीं
बस छूकर था गुज़रा
या उड़ा ले गया सब
कभी फाहे सा हल्का
कभी पर्वत सा भारी
कभी आँखों देखी
कभी माया जैसा
चला है चलेगा
बस चलता ही रहेगा
कुछ देता तो
कुछ लेता भी रहेगा
ना पराया न अपना
लगा ही नहीं
ये वक्त किसी का
हुआ ही नहीं
कभी बचपन बनेगा
स्वप्न पलनों में पलेगा
कभी जीवन की
ढ़लती साँझ बनेगा
यादों के झरोखे से
मीठी धूप जैसा
कभी ठंदे आंगन में खिलेगा
कभी टूटी सी छप्पर
कभी विजय गुंबद बनेगा
पल पल की कीमत
लगाता रहेगा
कभी कोयला
कभी हीरा बनेगा
कभी मेला
कभी वीरान होगा
कभी पुलकित
कभी हैरान होगा
कितने रूप इसके
कितनी परिभाषा
कभी कोटि सम्भावनाएं
कभी अथाह निराशा
सबको ही अलग ढंग
से ये मिलेगा
नहीं कोई ऐसा
जिसको छुआ नहीं
ये वक्त किसी का
हुआ ही नहीं
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©Mohammed Aneesh
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