आपबीती
कितने सपनों ने दम तोड़े हैं, घर की हालातों के आगे।
कितने ख्वाबों के महल टूटे, कितने प्रियजनों के वादे।
हो नासमझ, बेवकूफ़ तुम, किसी परलोक में मसरूफ़ तुम।
मतलबी भी, अज्ञानी हो, अशिष्ट भी, अभिमानी हो।
यह ध्यान रहे, वक्त बीत रहा है, अब समय कितना गवाओगी?
यह ध्यान रहे, सब जीत रहा है, तुम मुंह की खाकर आओगी।
मेरी सुनो, वो राह चुनो, जो मैं तुमको बतलाता हूं।
सफल होगी, कांति चमकेगी, मैं विश्वास दिलाता हूं।
लोगों की बातों को सुनकर, मन दुविधा में डोल गया।
शायद मैं इस काबिल नहीं, आज मेरा मन भी बोल गया।
©Aanchal Raj
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