कभी कभी अपनी ही जिन्दगी
बोझ सी लगती है दिल
में दबा रखा है पर कहेने
से जुबा लड़खड़ाती है
अपनी ही जिन्दगी के
मालिक नहीं किसी और
के इसारे पर जिन्दगी
नाचती है थक चुके है
सीमाओ बन्द कर अब
तो आजादी की प्यास
लगती पर हिम्मत नही
मुझमें दुनिया के रिवाज
को टोड़ने की अब तो
इन्तजार करती हूं जैसे तैसे
आखरी संंसा की
©Babita Buch
#बोझ