शुरुआत हुई कब कुछ याद सा नहीं,
वो मुझसे जुदा हुई कब कुछ याद सा नहीं।
रहम खा खा कर उसने मेरा साथ दिया है,
वो ऐसी हुई कब मुझे याद सा नहीं।
पहले तो मुकम्मल था ये इश्क ए दौर पर...
क्या हुआ अचानक कुछ याद सा नहीं।
नही पड़ता फर्क मेरे जख्मों को कुरेदने से भी...
वो दयालु थी कब कुछ याद सा नहीं।
मेरे जेहन से नहीं जा सकी उसकी यादें ताउम्र....
वो मुझे भुला क्यों बैठी कुछ याद सा नहीं।
भूल कर बैठें जो महफिल में चले गए...
किस्से क्या सुनाने थे कुछ याद सा नहीं।
एक अजनबी शहर में ठहरा हुआ हूं मैं...
कहां रहा करता था पहले कुछ याद सा नहीं।
शुरुआत हुई कब कुछ याद सा नहीं...
कुछ याद सा नहीं
©Versha Kashyap
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