कितना उलझ गया हूं जिंदगी.... तुझे सुलझाने की.... क

"कितना उलझ गया हूं जिंदगी.... तुझे सुलझाने की.... कोशिश में.......!! कि आज, तेरा यह दिया दर्द... मुझे बहुत सता रहा है..!! संघर्ष और मंजिलों के बीच, कितनी दूरी होती है... आज यह वक्त मेरा... मुझे बता रहा है...!! मुझे बार-बार घर बुलाने....की मां.. हठ कर रही है...!! और मैं, चाह कर भी... घर नहीं जा पाया.... मां.. घर पर... इस बार फिर से... छठ कर रही है...!!"

 कितना उलझ गया हूं जिंदगी.... तुझे सुलझाने की.... कोशिश में.......!!
कि आज, तेरा यह दिया दर्द... मुझे बहुत सता रहा है..!!
संघर्ष और मंजिलों के बीच, कितनी दूरी होती है...
 आज यह  वक्त मेरा... मुझे बता रहा है...!!
मुझे बार-बार घर बुलाने....की मां.. हठ कर रही है...!!
और मैं, चाह कर भी... घर नहीं जा पाया....
मां.. घर पर... इस बार फिर से... छठ कर रही है...!!

कितना उलझ गया हूं जिंदगी.... तुझे सुलझाने की.... कोशिश में.......!! कि आज, तेरा यह दिया दर्द... मुझे बहुत सता रहा है..!! संघर्ष और मंजिलों के बीच, कितनी दूरी होती है... आज यह वक्त मेरा... मुझे बता रहा है...!! मुझे बार-बार घर बुलाने....की मां.. हठ कर रही है...!! और मैं, चाह कर भी... घर नहीं जा पाया.... मां.. घर पर... इस बार फिर से... छठ कर रही है...!!

#छठ

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