दास्तां सच थी हमारी पर कोई गवाह नहीं यक़ीन होगा या | हिंदी शायरी

"दास्तां सच थी हमारी पर कोई गवाह नहीं यक़ीन होगा या नहीं उनको परवाह नहीं उनकी कच्ची उम्र से फ़क़त दूर रहे हम ये फ़िक्र ही थी उनकी हमारा गुनाह नहीं ज़िस्म ओढ़ लेना ही कोई मोहब्बत नहीं इस तरहा की होगी कभी हमारी चाह नहीं उन्हें ही ख़ुदा माना उनपे ही फ़ना है दिल माशाअल्लाह हैं वो जहाँ में अल्लाह नहीं जख्म हँसके सहे जायेंगे बदलेंगे नहीं हम मोहब्बत चुनी है हमने कोई राह नहीं हमें उनकी फ़िक्र तो ताउम्र रहेगी अज्ञात ये और बात है उन्हें तनिक खैर ख्वाह नहीं ©अज्ञात"

 दास्तां सच थी हमारी पर कोई गवाह नहीं 
यक़ीन होगा या नहीं उनको परवाह नहीं 

उनकी कच्ची उम्र से फ़क़त दूर रहे हम 
ये फ़िक्र ही थी उनकी हमारा गुनाह नहीं 

ज़िस्म ओढ़ लेना ही कोई मोहब्बत नहीं 
इस तरहा की होगी कभी हमारी चाह नहीं 

उन्हें ही ख़ुदा माना उनपे ही फ़ना है दिल 
माशाअल्लाह हैं वो जहाँ में अल्लाह नहीं 

जख्म हँसके सहे जायेंगे बदलेंगे नहीं हम 
मोहब्बत चुनी है हमने कोई राह नहीं 

हमें उनकी फ़िक्र तो ताउम्र रहेगी अज्ञात 
ये और बात है उन्हें तनिक खैर ख्वाह नहीं

©अज्ञात

दास्तां सच थी हमारी पर कोई गवाह नहीं यक़ीन होगा या नहीं उनको परवाह नहीं उनकी कच्ची उम्र से फ़क़त दूर रहे हम ये फ़िक्र ही थी उनकी हमारा गुनाह नहीं ज़िस्म ओढ़ लेना ही कोई मोहब्बत नहीं इस तरहा की होगी कभी हमारी चाह नहीं उन्हें ही ख़ुदा माना उनपे ही फ़ना है दिल माशाअल्लाह हैं वो जहाँ में अल्लाह नहीं जख्म हँसके सहे जायेंगे बदलेंगे नहीं हम मोहब्बत चुनी है हमने कोई राह नहीं हमें उनकी फ़िक्र तो ताउम्र रहेगी अज्ञात ये और बात है उन्हें तनिक खैर ख्वाह नहीं ©अज्ञात

#दास्तां

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