White क्या वो फिर ठीक था जिंदा दफनाया तुम्हें जा | हिंदी Sad

"White क्या वो फिर ठीक था जिंदा दफनाया तुम्हें जाता था..! साथ शौहर की मैय्यत के मरवाया तुम्हें जाता था..!! मारे ग़ैरत के दीवार में चुनवाया तुम्हे जाता था..! पूत की चाह में कोख से गिरवाया तुम्हें जाता था..!! कोम की कोम पढ़े इसीलिए पढ़वाया तुम्हें जाता था..! बात इज़्ज़त पे ना आए यही समझाया तुम्हें जाता था..!! तुमने आख़िर क्यों एक बाप को शर्मसार किया..! क्यों भाई की इज़्ज़त को रुसवा सरे बाज़ार किया..!! तुमने क्या ख़ूब अपनी कोम को अज़मत बख्शी..! तुमने क्या ख़ूब दिन को ईमान को इज्ज़त बख्शी..!! तुमने आइंदा की निस्वानियत को गिरफ्तार किया..! सौ आफरी तुमपे की क्या ख़ूब ख़बरदार किया..!! आवारापन में आज़ादी में क्या कोई फ़र्क नहीं..! हिजाबों की ये रुसवाई क्या खुला नर्क नहीं..!! इक सवाल तो हर एक फर्द से अब बनता है..! भाई से बाप से हर एक मर्द से अब बनता है..!! क्या हमने कभी खुद को पाक ज़हन जाना है..! क्या दूसरे की बहन को बहन अपनी माना है..!! ©Abd"

 White 

क्या वो फिर ठीक था जिंदा दफनाया तुम्हें जाता था..!
साथ शौहर की मैय्यत के मरवाया तुम्हें जाता था..!!

मारे ग़ैरत के   दीवार में चुनवाया तुम्हे जाता था..!
पूत की चाह में कोख से गिरवाया तुम्हें जाता था..!!

कोम की कोम पढ़े इसीलिए पढ़वाया तुम्हें जाता था..!
बात इज़्ज़त पे ना आए यही समझाया तुम्हें जाता था..!!

तुमने आख़िर क्यों एक बाप को शर्मसार किया..!
क्यों भाई की इज़्ज़त को रुसवा सरे बाज़ार किया..!!

तुमने क्या ख़ूब अपनी कोम को अज़मत बख्शी..!
तुमने क्या ख़ूब दिन को ईमान को इज्ज़त बख्शी..!!

तुमने आइंदा की निस्वानियत को गिरफ्तार किया..!
सौ आफरी तुमपे की क्या ख़ूब ख़बरदार किया..!!

आवारापन में आज़ादी में क्या कोई फ़र्क नहीं..!
हिजाबों की ये रुसवाई क्या खुला नर्क नहीं..!!

इक सवाल तो हर एक फर्द से अब बनता है..!
भाई से बाप से हर एक मर्द से अब बनता है..!!

क्या हमने कभी खुद को पाक ज़हन जाना है..!
क्या दूसरे की बहन को बहन अपनी माना है..!!

©Abd

White क्या वो फिर ठीक था जिंदा दफनाया तुम्हें जाता था..! साथ शौहर की मैय्यत के मरवाया तुम्हें जाता था..!! मारे ग़ैरत के दीवार में चुनवाया तुम्हे जाता था..! पूत की चाह में कोख से गिरवाया तुम्हें जाता था..!! कोम की कोम पढ़े इसीलिए पढ़वाया तुम्हें जाता था..! बात इज़्ज़त पे ना आए यही समझाया तुम्हें जाता था..!! तुमने आख़िर क्यों एक बाप को शर्मसार किया..! क्यों भाई की इज़्ज़त को रुसवा सरे बाज़ार किया..!! तुमने क्या ख़ूब अपनी कोम को अज़मत बख्शी..! तुमने क्या ख़ूब दिन को ईमान को इज्ज़त बख्शी..!! तुमने आइंदा की निस्वानियत को गिरफ्तार किया..! सौ आफरी तुमपे की क्या ख़ूब ख़बरदार किया..!! आवारापन में आज़ादी में क्या कोई फ़र्क नहीं..! हिजाबों की ये रुसवाई क्या खुला नर्क नहीं..!! इक सवाल तो हर एक फर्द से अब बनता है..! भाई से बाप से हर एक मर्द से अब बनता है..!! क्या हमने कभी खुद को पाक ज़हन जाना है..! क्या दूसरे की बहन को बहन अपनी माना है..!! ©Abd

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