चाह नहीं मुझे, मैं संगीत मधुर बजाऊँ,
बस तेरे होठों पर जो धरी जाए,
वो बंसी कान्हा बन जाऊँ।।
चाह नहीं मुझे, हर बसंत नाचूँ और सबको रिझाऊँ,
बस तेरे मुकुट पर जो बिराजे
वो मोर पंख बन जाऊँ।।
चाह नहीं मुझे, मैं खुशबू जग में फैलाऊँ,
बस तेरे माथे का टीका हो जो
वो चंदन पावन हो जाऊँ।।
चाह नहीं मुझे, किसी सुंदर काया पर ओढ़ी जाऊँ,
बस तेरे तन लगे जो,
वो पीला पीतांबर बन जाऊँ।।
चाह नहीं मुझे, राधा रुकमणी सा हक पाऊँ,
बस तेरी निर्मल दृष्टि पड़े जिस पर
वो मीरा दीवानी कहलाऊँ।।। ✍️ पारुल चौधरी
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