"मां बाप के प्यार में पली-बढ़ी थी
वह श्रद्धा थी जो बचपन में उंगली पकड़ के चली थी
पाला था मां बाप ने उसका हर नखरा सहकर
बड़ी होकर वह मां बाप को छोड़कर शैतान के साथ रहने चली थी
कर बैठी भरोसा आफताब नामक शैतान पर
मार खाकर भी उसकी उसे अपना प्यार समझ रही थी
नादान थी वह जो आफताब की साजिश ना समझ रही थी
नतीजन एक दिन वह भी दूसरी श्रद्धाओं की तरह टुकड़ों में बटी थी।
©Naya Bhart All In One
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