''असहाय चाँद''
"शायद चाँद इस रात के अंधियारे में भटका है...?
इसीलिए चाँद मेरे छत कि मुंडेर पर अटका है...
आसमां में काले बादलों का हुजूम है;
बिजली भी नाच रही है झूम-झूम के...
शायद वह किसी बिजली कि ठोकर से टपका है...?
अटके -अटके जब उसे बहुत देर हो हो गयी,
आरजू उसकी उड़ने कि फिर ढेर ढेर हो गये...
शायद वह उड़ता हुआ यहाँ आ कर लटका है...?
रात अंधियारे के साथ मिलकर रास रचाती है;
व्यवधान बनकर इतने में चांदनी पास आती है...
शायद उन दो प्रेमियों के नजर में वो खटका है...?
मेरे जैसा उसके साथ हादसा खुद-ब-खुद हुआ,
इश्क के दो घूंट पी-कर वह नशे में बेसुध हुआ...
इश्क के चंगुल से यहॉ भला कोन बच सका है...?"
©Aditya kumar prasad
असहाय चाँद
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